वैसे तो हमें तंग गलियों में जाना पसंद नहीं पर जो आज गुजरे दिमाग की उन गलियों से तो बहुत सी खिड़कियों से निहारते कुछ चेहरे नज़र आये, जिनको देख के लग रहा मानो किसी अपने के इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठे हैं।
और इंतेज़ार भी उनका जो कभी लौट कर आ ही नहीं सकते, जो इतने दूर हैं कि चाह के भी आकर आँसू पोछ नहीं सकते, जो देख तो रहे होंगे अपने बेबस माँ बाप को विलाप करते हुए पर सहारे के लिए खुद खड़े हो नहीं सकते, अपनी हमसफ़र की आँखों में आँसू देख कर पसीज तो उनका भी दिल रहा होगा आज, जो कभी भी नहीं रुलाने का वादा किया करते थे, प्यारे से बच्चों को दुनिया के मतलब को समझा पाने से पहले ही वो उनसे दूर होकर, वहीं से सिर्फ दुनियां देख पा रहे होंगे।
तमाम चेहरों के साथ चहल-कदमी की आवाज़ सुनाई उन्हें भी दे रही होगी, कुछ खुदको दोष दे रहे होंगे, कुछ भगवान से सवाल कर रहे होंगे, पूछ तो रहे होंगे वो भी आँखों में नमी लिए- के क्यूँ परिवार को दुख का भागीदार बना दिए ? आज जब विदाई लेंगे तो अपने बहुत से लोगों को देख तो पा रहे होंगे और बात करने को तड़प भी बहुत रहे होंगे, नज़र में सब कुछ होगा, बस बयाँ कुछ कर नहीँ पा रहे होंगे, काँधे पर बैठ के जिनके जहाँ देखा, आज अपना जनाज़ा उनके ही काँधे पर देख कलेजा बिफर तो उनका भी रहा होगा, गुहार वो भी रह-रह के लगा रहे होंगे उन सभी से अपनो के ख़्याल का, पर जानते वो भी हैं ये जो भीड़ है आज यहाँ, वो सिर्फ़ कुछ ही देर की है, मिलते ही मिट्टी में उनके सब चल देंगे अपने अपने गंतव्य पर, और रह जाएंगे घर पर आस भरी निगाहों के साथ सिर्फ उनके कुछ जो सिर्फ उनके ‘अपने’ होंगे।
लोग जो उनको हज़ारों रिश्तो नामों से पुकारते होंगे कभी आज वो सभी के लिए सिर्फ ‘डेड बॉडी’ बनकर रह गए, सोच तो वो भी रहे होंगे कि वाह रे जमाने! गजब कर दिए कुछ पल पहले अपने थे और एक पल में ‘डेड बॉडी’ क़रार दिए। ये देख के एक गीत उनको भी याद आ रहा होगा- “कसमें, वादे, प्यार, बफा, सब बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या…” नियति से जोर कहाँ चलता है साहब इस अफ़सोस के साथ सभी मन में हज़ार सवाल लिए, कचोटते हुए भारी मन को चुपचाप गम में लीन हुए खुद को और दूसरों को सांत्वना देते हुए इस दुख की घड़ी को काट तो लेंगे पर जब जब प्रहर दर प्रहर अकेले में छोटी से छोटी बातों के लिए जब निगाहें ढूंढेंगी उसे और तरसेंगी एक आवाज़ के लिए, तो पल-पल घुटते वो क्षण मरण-तुल्य होंगें।
और इसी के साथ जब फोन की आवाज़ सुनी तो गली के दूसरे छोर पर खुद को पाया और समझ आया कि इन तंग गलियों में घुसोगे तो बाहर का रास्ता मुश्किल ही नज़र आएगा। ख़ुदको बाहर देख थोड़ा सुकून की सांस हमने ली ही थी ये सोच कर के आज ऐसा कोई दुख नहीं हमें और न ईश्वर किसी को दे, हमारे दुख से कई गुना ज्यादा आज कोई दुख में है ईश्वर उसे पहले सम्हाले, फिर फोन उठाया और दूसरी तरफ से एक आवाज़ सुनाई दी ‘अंतिम संस्कार हो गया है…’
Adbhut ???