जैसा कि आप सब को विदित हो ही चुका होगा कि आज हम किस बारे में चर्चा करने जा रहें हैं लेकिन यहाँ मैं आप सभी को एक बात स्पष्ट कर दूँ कि जान तो आप सभी गए होंगें इस “कोरोना सुर” के बारे में पर फिर भी मेरा यही कहना है कि “कोरोना को क्यों रोना” इससे मेरा क्या आशय है आप लोग आशा है आगे समझ जाएंगे ।
वैसे तो प्राचीन काल से ही भारत एक सजग प्रान्त रहा है यहाँ अनेक प्राचीन सभ्यता और संस्कृतियाँ विद्धमान हैं लेकिन कहते है ना के ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ और दूसरे की थाली में घी हमेशा ज्यादा ही लगता है तो भागे चले जा रहे हैं पश्चात संस्कृति के पीछे जिसमें ना सँस्कार दिखते ना संस्कृति, खैर मेरा तो इतना कहना है कि जो लोग “हैंड-शेक” और “हैंड-वाइप” के साथ साथ नैपकिन का इस्तेमाल करते थे आज कोरोना के खौफ से “नमस्ते” और हर जगह छूने पर “धोने” पर आ गए हैं, तो जो काम 200 साल में हिंदुस्तान में रहकर नहीं सीखे वो कोरोना ने सिखा दिया तो हम तो धन्यवाद ही कहेंगे ‘कोरोना सुर’ को ।
ये तो थी पश्चात वासियों की बात अब जरा अपनो की भी कर लें, अपने कौनसे कम हैं साब वो तो सूट बूट पहन कर अपने रहे ही कहाँ हैं, गलत इनको भी कैसे कहें ये बेचारे भी कब तक ‘माया-मेनका’ से दूर भागेंगे कभी तो चपेट में आने ही थे। कभी बुजुर्गों के साथ बैठे होते तो कुछ सुनते देखते पर इनको अपने ‘टिक-टोक’, ‘इंस्टा-स्टोरीज’ से फुरसत मिले तो कुछ और भी सोचे । अब जो ये ‘मास्क’ लगाए फिर रहे हैं ना वो पूछियेगा अपने बूढ़े-बुजुर्गों से उनके जमाने में किसे बांधे जाते थे ! जवाब मिलेगा “अच्छा ‘मुसिका’ ये तो ढोरों को बाँधे जाते थे, जिससे वो ज़मीन से कुछ भी कीट ना खा लें..!” और वही ‘मुसिका’ को तोड़-मरोड़ कर बना है ये ‘मास्क’ । अब दौर देखो हम लोगों को बाँधने पड़ रहे हैं । अपनी संस्कृति ही जान लो क्यों दूर के ढोलों पर नाचना है..!!
अब देश विदेश की बात करें तो चीन के तो क्या ही कहने, जनाब को अव्वल रहना है चाहे सही हो या गलत । आज पहली बार भारत को पीछे रहने और पाकिस्तान को उससे ऊपर देख खुशी सी हो रही होगी कि चलो ‘यहाँ तो ये आगे हैं..!!’ अब बाहर से आने वाले हमारे सभी आगुन्तकों आपके आने पर हमें दिक्कत नहीं है दिल बड़ा है हमारा लेकिन कृपया जाँच तो करवा कर आएँ। बाहर से आने वालों को लगता होगा कि हमें कहाँ कोरोना होगा हमारा तो ‘खून ही गर्म है’ या हम तो ‘विदेश होकर आने वाले देशी है’ माना कि नाम है आपका, और इलाज भी हो जाएगा पर क्या पार्टी करनी ज़रूरी है?? वो भी नेताओं के साथ पार्टी इस पर तो (मोदीजी माफ करें ) कहीं पोलिटिकल एजेंडा तो नहीं..!! डॉक्टर्स की मदद लेने की जगह उनकी अपने घरों में रहकर ही मदद करें उन्हें भी पार्टी का मौका जल्दी दें ।
जो लोग ‘सोशल-डिस्टेंस’ के नाम पर ‘सेल्फ-क्वारंटाइन’ कर रहे हैं और फिर भी इंटरनेट के माध्यम से लोगों से जुड़े हैं उनसे एक ही सवाल है हमारा तो “सेल्फ़-क्वारंटाइन में होकर आज जो बाहर आने को जी मचल रहा है जिंदगी थम सी गयी है क्या वो कभी ‘स्लेव-क्वारंटाइन’ को समझ पाएंगे..??” ज़रा विचार करियेगा इसपर भी कभी कभी ‘स्लेव’ आपका बेजुबान जानवर भी हो सकता है तो कहीं जुबाँ वालों के भी मुँह सिल दिए जाते हैं..!!
माना कि ‘माल’ चीन का है पर है तो असली..!! ‘मीम’ शेयर करने के अलावा सजगता भी शेयर करिये..!! इसलिए अपना और अपनों का ध्यान रखें ‘सेल्फ क्वारंटाइन’ में भी जाएँ, जो भी निर्देश हो पालन करें, जो कुछ भी हो रहा है बेशक़ बहुत ही मुश्किल की घड़ी है और इस तरह इस समय में सब एक साथ मिलकर ‘कोरोना सुर’ से जूझ रहे हैं और इसमें ‘वसुधैव-कुटुम्बकम’ की झलक देखने को मिल रही है वही बनी रहे, स्वस्थ रहें सजग रहें साथ रहें, राष्ट्रहित में सहयोग देंगे तो सुदृढ़ देश का निर्माण होगा वरना अकेले मोदीजी कहाँ तक देश को खीचेंगे, हम मोदीजी से नहीं, मोदीजी हमसे हैं, अब हम और आप मिलकर ही इस महामारी तथा मारामारी से साथ में बचाव कर सकते हैं, दिल्ली के मफ़लर वाले “आप” भी समझिये और सभी आगंतुकों के साथ साथ समस्त नेतागण भी,हम और “आप” के लिए ही मोदीजी भी कर्यरत हैं😛..!! इस मुद्दे को नहीं पीछे के मर्म को समझें..!!
कोरोना को क्यों रोना, मिलकर साथ इसे है धोना..!!
Kya baat
Kya baat
Kya baat
Satya vachan..😎
We’ve been each very best and bargain essay creating assistance! Our low-budget essay writers are genuine pros which includes a MA and PhD levels | Hurry up and ask for a paper.
If you decide to seek out with the specialist support with the personalized essay, examine paper, phrase paper, dissertation or every other bit of composing, you could be suggested to show.
Thank you..🙂
Visit other posts,
Hope will like them too..
Hahaha. Atyant rasik bhaav me pesh kiya hai. Good one!!