आज आपसे बातें करने का मन है आज ना ज्ञान देंगे ना ही कुछ अपना कहेंगे आज सिर्फ आपकी सुनेंगे, कुछ ऐसा ही सोच कर हम निकले थे घर से उनसे मिलने। सोचते सोचते बातों को, बहुत सी बातें जो कहीं गुम हो गयी थी इस दुनिया की भीड़ में आज उनको ढूंढते हुए हम चले ही जा रहे थे और पहुँच गए एक ऐसे ठिकाने पे जहाँ आज ना कोई जनता, ना कोई जानवर।
बटोरते हुए कुछ पुरानी यादोँ के टुकड़ों को हम उस ढांचे में प्रवेश तो कर गए पर वहाँ तो हालात कुछ और ही बयाँ कर रहे थे। आज जा रहे थे किसी की सुनने और अटक गए अतीत में जहाँ पहुँच कर समझ नहीं आ रहा था के सुकून मिल रहा है या सुकून उचट रहा है। वो दरवाज़ा जो कभी घर की शान में अकड़ा हुआ नज़र आया करता था आज वो एक असहाय सा बिखरा पड़ा है, वो दीवारों की चमक जिसपे धूल भी बैठने से पहले सोचती थी आज दीमक से लदी पड़ी हुई हैं, वो बैठक में पड़ी चारपाई औऱ सोफा सेट जो कभी कुछ देर खाली रहने को तरसते थे वो आज इस तरह लोगो को तरस जाएंगे उनको मालूम ना था, वो दीवार पे अटकी घड़ी जिसपे कोई नज़र भी ना डाला करते थे, वो अपनी उम्र पूरी होने की आस समय काट रही है। वो छाछ बिलोने वाले खम्बे पर आज भी चिकनाहट के निशान बाकी हैं।
झूले के अपने निशान से लेकर होली के रंगों में रंगी हवेली आज बदरंग सी नज़र आ रही है। दीवाली पर दुल्हन सी सजी वो और उसके सामने खड़े गाड़ी घोड़े का दिल आज भी वहीं बैठे इंतेज़ार कर रहे हैं के इस दीवाली तो कोई यहाँ भी रोशन कर दे। कहते हैं ना के वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता और पुराना छूटेगा नहीं तो नया आयेगा कैसे? समय के साथ सबकी चमक फीकी पड़ जाती है फिर वो इंसान हो या मकान।
इंसान के जाने पर तो जोर नहीं है किसी का पर क्या इंसान की यादों को भी मिटा दिया जाता है क्या? उन यादों को जिनसे कभी आपका भी वास्ता हुआ करता था जिनको कभी अपने और हमने भी जिया है क्या उनको भूल जाना सहज है क्या? अरे अपनो को तो नहीं सम्हाले हो कभी पर खुदकी यादों को और यादों से जुड़े हर एक मंज़र का एक बार ख्याल तो करो, वो यादें फिर से जी उठेंगी और जी उठेगा वो समय के साथ धुँधला हुआ पुराना घर। कभी कोशिश करो उन पलों को समेटने की जैसे टकराते हुए हम यहां का रास्ता भूल गए आप भी समेटिये और सहेजिये वो सुकून जिसकी कहीं ना कहीं आपको भी आज आवश्कता है।
ये जो यादों की धरोहर इन खण्डरों में छोड़ के गए हैं ना हमारे अपने, उसे नवीनीकरण की जरूरत शायद ना भी हो और इतना वक़्त भी कहाँ किसी के पास, पर “स्मृतिकरण” की आस तो जरुर होगी।
Sach me.. yade yad aati h….bhut acha..