भारत में कोरोना के प्रकोप को तेजी से बढ़ते हए देख मन बड़ा विचलित होकर एक अनजाने से भय की तरफ दस्तक देता दिखाई पड़ रहा है इसी बीच कई छोटी मोटी समस्याओं के साथ कुछ सवालों में से एक सवाल ये भी है कि अब आगे क्या ?
लॉक-डाउन के दो कुछ हद्द तक सफलतापूर्वक फेज पूरे होने के बाद तीसरे फेज में चलने पर भी भले लोगों को ये समझ नहीं आ रहा है कि इसके पीछे की मंशा क्या है, किस वजह से है, और किसके लिए है। क्यों सरकार इसी पर टिकी हुई है क्यों कुछ और हल नहीं निकाल पा रही। उन्हें अगर कुछ दिखाई पड़ रहा है तो केवल और केवल लॉक-डाउन कि ये लॉक-डाउन खुलेगा कब ? हमें तो बाहर जाना है, परेशान हो गए हैं, पता नहीं हो क्या रहा है, अरे साहब घर की दीवारों पर फ़ोटो लटकने से अच्छा है घर की खिड़कियों में लटके रहो कभी तो बाहर निकलोगे।
हमारे ही देश के कुछ आंतरिक मामले जो आन्तरिक होते हुए भी बाह्य ज्यादा मालूम पड़ते हैं जिनमें मौलाना साद जी के तबलीगी जमात के मकरज़ प्रकरण से हम अभी तक बाहर नहीं निकल पा रहे थे कि हंदवाड़ा मुठभेड़ की खबर ने देश को सकते में डाल दिया कि कोरोना जैसी महामारी से जूझने की बजाय पड़ोसी हमसे आंख मिचौली खेलने में लगा है शायद वह यह भूल गया है कि शहीद हुए 5 जवानों का बदला हम कैसे और कहाँ ले सकते हैं। इसका अंदाज़ा वह रियाज़ नाइकू के एनकाउंटर और तनवीर अहमद की गिरफ्तारी से लगा ले।
जहाँ देश बड़े बड़े मसलों को हल करने में लगा हुआ है वहाँ आम आदमी घरों में ‘बोर’ हो रहा है। इतना ही बोरडम लग रहा है तो ज़रा शहीद हुए जवानों, इलाज कर रहे डॉक्टर्स, बिना आराम किये लगातार सेवा दे रहे नर्सेज, पुलिस, सफ़ाई कर्मचारी आदि रक्षकों के बारे में जानिए जिनको देखने भर से आपकी आत्मा जाग उठेगी। इस वक़्त सेवा दे नहीं सकते तो कम से कम सेवा का भार भी ना बढ़ाएं।
इन सब के बीच देश की अर्थव्यवस्था का भार सौंपा गया है शराब के ठेकों को। शराब जो फ्री में पी जाए तो सरकार बदल दे और पैसों से पी जाए तो अर्थव्यवस्था, बड़ी ही कमाल चीज़ लगती है। अब देश की अर्थव्यवस्था चाहे सुधर भी जाए पर कितने ही रामायण, महाभारत और धार्मिक कार्यक्रम दिखा लो फिर भी घर की व्यवस्था इससे बिगड़ ही जानी है।
जो लोग जितना बाहर के लिए फड़फड़ा रहे हैं वो ही लॉक-डाउन खुलने पर सबसे ज्यादा ‘मिसिंग लॉक-डाउन डेज’ के स्टेटस लगाएंगे। इसलिए आप सब से आग्रह है कि जहाँ हैं, जैसे है, कुछ दिन और निकालिये। लॉक-डाउन को बाँधी हुई जंजीर ना समझ कर इसे अपनाया हुआ सुरक्षा कवच समझिये। लॉक-डाउन खुल भी जाए फिर भी अपनी और अपनों की सुरक्षा अपने हाथ रखिये। सुरक्षित आप रहेंगे और बचता इस महामारी से देश रहेगा। इस सुरक्षा कवच को पहनिये, पहनाइए और पहचानिए कि ये जिंदगी कितनी अनमोल और खूबसूरत है।
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Light yet inspiring. Mza aa gya padh kar. 👌👌👌👌