रुबरु…
तुम्हारी जुबाँ से अगर मैं सुनूँ,कुछ अनकहे शब्द,जो निकलने को आतुर दिखते हैं,लिए कुछ स्वर्णिम स्पंदन,जो बनेंगें आधार और रचेंगे नए आयाम,लिए उनको मैं सपने फिर बुनूँ,सपनों को हक़ीक़त में…
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रुबरु…
तुम्हारी जुबाँ से अगर मैं सुनूँ,कुछ अनकहे शब्द,जो निकलने को आतुर दिखते हैं,लिए कुछ स्वर्णिम स्पंदन,जो बनेंगें आधार और रचेंगे नए आयाम,लिए उनको मैं सपने फिर बुनूँ,सपनों को हक़ीक़त में…
जैसा कि आप सब को विदित हो ही चुका होगा कि आज हम किस बारे में चर्चा करने जा रहें हैं लेकिन यहाँ मैं आप सभी को एक बात स्पष्ट…
"क्या तुम मेरे बिना एक कदम भी चल पाओगे ? बड़े आये अकेले सफर तय करने वाले, अकेले रह नहीं सकते और पीछा छुड़ाने की बात करते हो।" अब अपनी…