ये दुनियां की चमक में फर्जी यारी सी लगती है,
ये टिक-टोक अब हमे एक बीमारी सी लगती है।
हैं मुख़ातिब सब यहाँ इसकी आग से,
फिर भी ये दिल में बड़ी भारी सी लगती है।
मिलियनों में लाइक्स ओर हज़ारों में फॉलोवर्स,
फिर भी ना जाने ये क्यों भुखमरी सी लगती है।
आंखों में सपने और थोबड़े पे लीपा-पोती,
ये सस्ते में बिकती कठपुतली सी लगती है।
मुजरे करते फिर रहे हैं, लोग यहाँ ऐसे,
न जाने क्यों ये उनकी, एक मजबूरी सी लगती है।
लड़के लगाते लालियाँ और लड़की देती गालियां,
देखने में इनको ये, उच्च संस्कृति सी लगती है।
वीडियो से तुम्हें, जिंदगी आबाद सी लगती है,
असल में तो जिंदगी हमें बर्बाद सी लगती है।
जो बहा रहे हैं आँसू, यहाँ बैन पर इसके,
उनमें समझदारी मुझे, कुछ कम सी लगती है।
क्यूँ देते हो तुम, यूँ गालियां सरकार को,
देश से ज्यादा तुम्हें, ये टिकटोक प्यारी सी लगती है।
गर है हुनर तुमझें तो, नज़र आएगा कहीं और,
क्यों तुमको इसकी ही एक कमी सी लगती है।
चलो उठो और निकलो बाहर, इन ऍप्स के गम से,
बिना इनके भी देखो दुनिया, कितनी प्यारी सी लगती है।
Thanks so much for the blog article. Thanks Again. Cool. Shaylah Padget Chere